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26.11.2016
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मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले ने प्रदेश के उन नेताओं को टेंशन में डाल दिया है जो चुनाव मैदान में ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव से पूर्व केंद्र के इस निर्णय से प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा में जबर्दस्त खलबली है।दोनों की इस बेचैनी की वजह दरअसल इलेक्शन खर्च है जो ऑन रिकार्ड बेशक निर्धारित सीमा से कम दिखाया जाता हो, मगर ऑफ  द रिकार्ड उसका कोई हिसाब नहीं है। इसलिए हर दल के नेता दुविधा में हैं कि अपने पक्ष में चुनावी हवा बनाने के लिए इस बार बेहिसाब धन कहां से जुटाएंगे।

जबकि विरोधाभास यह है कि दस्तावेजों में राज्य के विधानसभा चुनाव के खर्च की तस्वीर बेहद आदर्श दिखती है। देश में चुनावों का विश्लेषण करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट पर गौर करें तो 2012 के विधानसभा चुनाव का खर्च अंचभे में डालता है। भाजपा और कांग्रेस के एक भी उम्मीदवार ने खर्च की निर्धारित सीमा को नहीं लांघा। प्रदेश में प्रति उम्मीदवार खर्च की यह सीमा 11 लाख रुपये है।

पिछले चुनाव में तीन उम्मीदवारों ने तो तय सीमा से महज 18 से 22 फीसद खर्च करके चुनाव जीता। इनमें गंगोलीहाट सुरक्षित सीट से नारायण राम आर्य, पुरोला से  माल चंद और सोमेश्वर से अजय टम्टा थे, जिन्होंने करीब साढ़े तीन लाख रुपये में चुनाव निपटा दिया। नारायण राम आर्य ने तो 2,84,004 रुपये में चुनाव जीता। पिछले चुनाव में प्रचार पर सबसे ज्यादा 10.13 लाख रुपये रुद्रप्रयाग सीट से चुनाव लड़े डॉ. हरक सिंह रावत ने खर्च किया।

डॉ. जीतराम 9.91 लाख रुपये और मसूरी से गणेश जोशी 9.65 लाख के खर्च के साथ सर्वाधिक खर्चीले उम्मीदवारों में क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। लेकिन हकीकत में क्या इतने पैसों में विस चुनाव लड़ना मुमकिन है? जानकारों की मानें तो ऑफ द रिकॉर्ड चुनावी खर्च का कोई हिसाब नहीं होता। विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों ने खर्च का जो ब्योरा दिया, उससे अधिक धन तो बीडीसी और जिला पंचायत के चुनाव में ही खर्च हो जाते हैं।

चुनाव की खर्च की यही हकीकत नोटबंदी के कारण माननीयों और नेताओं का फसाना बनी है। पिछले पांच साल से चुनाव की तैयारी में जुटे कतिपय दावेदारों ने टिकट की जुगत भिड़ाने के साथ इलेक्शन खर्च का बही-खाता तैयार कर रखा था। लेकिन नोटबंदी के फैसले ने सबके रोकड़ हिला दिए हैं।

जानकारों की मानें तो जिन्होंने जमीन पर पसीना बहाया है, वो तो कम खर्च में भी चुनाव संभाल लेंगे, लेकिन जिन्होंने धनबल की चुनावी गणित तैयार की थी, उनकी पेशानी पर बल है। नोटबंदी का ही असर है कि इलेक्शन लड़ने के लिए मचल रहे टिकट के दावेदारों का जोश ठंडा पड़ता नजर आ रहा है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी को आवेदन की अंतिम तिथि को दो बार खिसकाना पड़ा है।

हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय का कहना है कि नोटबंदी के निर्णय से टिकट के आवेदन शुल्क का ड्राफ्ट बनाने में हो रही देरी की वजह से अंतिम तिथि बढ़ाई गई है। 

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