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10.10.2020
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  • बीते 15 साल में बिहार से सभी पार्टियों के उम्मीदवारों की रिपोर्ट एडीआर ने जारी की है
  • गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी उम्मीदवारों की संख्या में भाजपा, राजद और जदयू बराबर ह

    बिहार में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों को टिकट देने में भाजपा सबसे आगे रही है। भाजपा ने साल 2005 से अबतक जितने भी उम्मीदवारों को सांसद या विधायक का चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है उसमें 59 प्रतिशत ने अपने ऊपर आपराधिक मामले होने की जानकारी दी है। इसके अलावा गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी उम्मीदवारों की संख्या में भाजपा, राजद और जदयू के बराबर में खड़ी है। यह खुलासा 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' की एक रिपोर्ट में हुआ है।

    2005 से बिहार में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों पर रिपोर्ट

    रिपोर्ट के अनुसार साल 2005 से अब तक बिहार में हुए विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में भाजपा ने 426 उम्मीदवारों को अपना टिकट दिया है, जिसमें 252 ने अपने ऊपर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है। भाजपा के बाद राजद (502 में 280, 56 फीसदी) और जदयू (454 में 234, 52 फीसदी) हैं। गंभीर आपराधिक मामलों की श्रेणी में भाजपा के 426 में से 148, राजद के 502 में 176 और जदयू के 454 में 158 (सभी 35 फीसदी) उम्मीदवार हैं।

    आपराधिक छवि के सबसे ज्यादा उम्मीदवार लोजपा से जीते

    रिपोर्ट में यह भी देखने को मिला है कि वैसे उम्मीदवार जिनपर आपराधिक मामले हैं, उनमें लोजपा के सबसे अधिक चुनाव जीते हैं। साल 2005 से अब तक लोजपा के टिकट पर जीते 27 सांसद-विधायक में से 19 (71 फीसदी) ने अपने ऊपर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की थी। सामान्य आपराधिक मामलों वाले जिताऊ उम्मीदवार भाजपा में 63 फीसदी (246 में 154), राजद में 56 फीसदी (158 में 89) और कांग्रेस में 54 फीसदी (46 में 25) रहे हैं। जदयू 50 फीसदी (296 में 149) ऐसे उम्मीदवारों के साथ पांचवें स्थान पर रहा है।

    इसी अवधि में लोजपा के ही 27 में से 11 (41 फीसदी) सांसद-विधायक ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है। इस श्रेणी में राजद के 158 में 62 (39 फीसदी), जदयू के 296 में 101 (34 फीसदी) और भाजपा के 246 में 84 (34 फीसदी) उम्मीदवार हैं।

    आपराधिक मामलों वाले सबसे अधिक निर्दलीय जीते

    एडीआर की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि आपराधिक छवि वाले निर्दलीय उम्मीदवार सबसे अधिक चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। बीते 15 सालों में ऐसे 21 में 15 (71 फीसदी) सांसद-विधायक रहे हैं। वहीं गंभीर आपराधिक मामलों वाले 38 प्रतिशत (21 में 8) निर्दलीय सांसद-विधायक चुनाव जीते हैं।

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