Source: 
Amar Ujala
Author: 
Date: 
05.04.2022
City: 
New Delhi

इस मामले में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण. जस्टिस कृष्ण मुरारी व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मंगलवार को वकील प्रशांत भूषण की दलीलों का संज्ञान लिया। भूषण ने कहा कि यह गंभीर मामला है। इस पर अर्जेंट सुनवाई होना चाहिए। 

राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के जरिए चंदा जुटाने की इजाजत देने वाले कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। शीर्ष कोर्ट इससे संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई। वकील प्रशांत भूषण ने शीर्ष कोर्ट से कहा कि आज सुबह खबर आई है कि कलकत्ता की एक कंपनी ने चुनावी बांड के जरिए 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उस पर कोई आबकारी छापा न पड़े। यह लोकतंत्र को विकृत करता है।

 

भूषण के इस कथन व दावे पर प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस कृष्ण मुरारी व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने संज्ञान लिया। भूषण ने याचिकाकर्ता एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि यह गंभीर मामला है। इस पर अर्जेंट सुनवाई होना चाहिए।  इस पर सीजेआई रमण ने कहा कि 'यदि यह कोविड का मामला नहीं होता तो मैं यह सब सुनता।' सीजेआई ने इसके साथ ही उनकी याचिका सुनवाई के लिए जल्दी सूचीबद्ध करने का भी आश्वासन दिया। 

इससे पहले भूषण ने पिछले साल 4 अक्तूबर को शीर्ष अदालत से जनहित याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की मांग की थी। इसमें केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया था कि वह राजनीतिक दलों के चंदे से संबंधित एक मामले के लंबित रहने के दौरान चुनावी बांड की बिक्री शुरू न करें, क्योंकि उनके खातों में पारदर्शिता नहीं है। 

एनजीओ ने याचिका में आरोप लगाया था कि 2017-18 और 2018-19 की अपनी ऑडिट रिपोर्ट में राजनीतिक दलों द्वारा घोषित चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों के अनुसार, सत्तारूढ़ दल को अब तक जारी किए गए कुल चुनावी बांड का 60 फीसदी से अधिक प्राप्त हुआ। यह भी दावा किया गया कि अब तक 6,500 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बांड बेचे जा चुके हैं। इमनें से अधिकांश चंदा सत्ताधारी दल को जाता है।

याचिका में कहा गया है कि चुनावी बांड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदे और भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा गुमनाम चंदे के द्वार खोल दिए हैं। इसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। यह भी दावा किया गया है कि चुनाव आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक ने 2017 में चुनावी बांड जारी करने पर आपत्ति जताई थी। यह भी आरोप लगाया गया है कि 99 फीसदी बांड एक करोड़ से लेकर 10 लाख रुपये मूल्य के हैं। इससे साबित होता है कि ये नागरिकों द्वारा दिया गया चंदा नहीं है, बल्कि बड़ी कंपनियों द्वारा और बदले में सरकार से लाभ पाने की दृष्टि से दिया गया है।  

गत वर्ष 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 की चुनावी बांड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था।  इसके साथ ही योजना पर रोक के लिए एनजीओ के एक अंतरिम आवेदन पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था।  सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बांड योजना शुरू की थी। इसके तहत चुनावी बांड देश का कोई भी व्यक्ति खरीद सकता है। 
 

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