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Source
Jagran
https://www.jagran.com/did-you-know/general-electoral-bonds-scheme-why-were-electoral-bonds-cancelled-understand-the-meaning-of-the-supreme-court-decision-know-what-will-be-the-impact-on-whom-23653736.html
Author
Siddharth Chaurasiya
Date

यह एक वचन पत्र की तरह होता था जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था। इन पर कोई ब्याज भी नहीं लगता था। यह 1000 10000 एक लाख दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को एक एतिहासिक फैसले में विवादास्पद चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से बदले में उपकार करने की संभावना बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रद्द किया बॉन्ड?

  • पांच जजों की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बॉन्ड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
  • चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच बंद संबंध के कारण प्रति-उपकार की व्यवस्था हो जाएगी। यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।"
  • यह कहते हुए कि राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है।
  • सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है। “राजनीतिक असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक, आर्थिक असमानता के कारण व्यक्तियों की राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता में अंतर है।
  • उन्होंने कहा, ''आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।''
  • पहले कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था

    • नवंबर 2023 में सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने लगातार तीन दिनों तक दलीलें सुनने के बाद चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
    • पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, बी.आर. गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे।
    • शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 (1) के तहत नागरिकों के सूचना के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है और यह पिछले दरवाजे से लॉबिंग को संभव बनाती है
    • याचिका में कहा गया कि चुनावी बॉन्ड योजना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, तथा विपक्ष में राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर को समाप्त करती है।

    क्या था चुनावी बॉन्ड?

    • चुनावी बॉन्ड की घोषणा 2017 के केंद्रीय बजट में की गई थी और इन्हें लागू 29 जनवरी, 2018 में किया गया था। यह एक किस्म का वित्तीय इंस्ट्रूमेंट था, जिसके जरिये कोई भी राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से चंदा दे सकता था।
    • आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया था।
    • यह एक वचन पत्र की तरह होता था, जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था।
    • इन पर कोई ब्याज भी नहीं लगता था। यह 1,000, 10,000, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे। इन्हें सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से खरीदा जा सकता था।
    • चंदा देने वाले को बॉन्ड के मूल्य के बराबर की धनराशि एसबीआई की अधिकृत शाखा में जमा करवानी होती थी। यह भुगतान सिर्फ चेक या डिजिटल प्रक्रिया के जरिए ही किया जा सकता था।
    • बॉन्ड कोई भी व्यक्ति और कोई भी कंपनी खरीद सकती थी। कोई कितनी बार बॉन्ड खरीद सकता था, इसकी कोई सीमा नहीं थी।
    • चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती थी, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता था।
    • केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता था, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
    • योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते थे।
    • इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जाता था।

    कैसे काम करती थी योजना

    - सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 के अपने बजट भाषण में कहा था कि इस योजना को राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए लाया जा रहा है।

    - मुख्य रूप से केंद्र सरकार योजना का समर्थन इसी आधार पर करती थी। जो इस योजना का लाभ पाने के लिए योग्य हो। इसके लिए केवल वही पार्टी योग्य थी जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत पंजीकृत है।

    - इसके अलावा, एक और शर्त अनिवार्य था कि उस पार्टी को पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कुल पड़े मतों का कम से कम एक प्रतिशत मिला हो।

    - योग्य पार्टियों को अपने बैंक खाते की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते थे। जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में।

    - ये बॉन्ड्स एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आसानी से मिल जाते थे। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकता था, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता था।

    - इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा लेता था। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का इस्तेमाल किया जाता था।

    बॉन्ड के जरिए अब तक कितना धन जुटाया जा चुका है?

    • भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अब तक 16,518.11 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे जा चुके हैं।
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वित्तीय वर्ष 2022-23 में सभी कॉर्पोरेट दान का लगभग 90 प्रतिशत प्राप्त हुआ है।
    • इलेक्शन वॉचडॉग की रिपोर्ट के अनुसार, जहां अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने संयुक्त रूप से लगभग 70 करोड़ रुपये का कॉर्पोरेट चंदा दिया, वहीं भाजपा को इस क्षेत्र से 610.491 करोड़ रुपये मिले।
    • एडीआर की रिपोर्ट में 2022-23 के लिए राष्ट्रीय दलों द्वारा घोषित कुल 850.438 करोड़ रुपये के दान पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें से 719.858 करोड़ रुपये अकेले भाजपा को मिले।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा द्वारा घोषित कुल दान इसी अवधि के लिए कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी या सीपीआई (एम) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) द्वारा घोषित कुल दान से पांच गुना अधिक है।
    • भारत के चुनाव आयोग (ईसी) को पार्टियों द्वारा प्रस्तुत विवरण के अनुसार, एडीआर रिपोर्ट वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 20,000 रुपये से अधिक के दान पर आधारित है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने 79.92 करोड़ रुपये, आप ने 37 करोड़ रुपये, एनपीपी ने 7.4 करोड़ रुपये, सीपीआई (एम) ने 6 करोड़ रुपये, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस अवधि के दौरान 20,000 रुपये से अधिक का कोई चंदा नहीं मिलने की घोषणा की।
    • 2022-23 के दौरान राष्ट्रीय दलों को प्राप्त कुल दान में 91.701 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जो पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 से 12.09% की वृद्धि है।
    • भाजपा को दान 2021-22 के दौरान 614.626 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 719.858 करोड़ रुपये हो गया।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी ओर, कांग्रेस का चंदा 2021-22 के दौरान 95.459 करोड़ रुपये से घटकर 2022-23 के दौरान 79.924 करोड़ रुपये हो गया।
    • दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र क्रमशः 276.202 करोड़ रुपये, 160.509 करोड़ रुपये और 96.273 करोड़ रुपये के साथ राष्ट्रीय पार्टी के दान में शीर्ष योगदानकर्ता थे।
    • कॉर्पोरेट और व्यावसायिक क्षेत्र के दान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो 680.495 करोड़ रुपये या कुल दान का 80.017% था।

    क्यों बनाया गया था चुनावी बॉन्ड?

    • चुनावी बॉन्ड को केंद्र सरकार ने चुनाव में राजनीतिक दलों के चंदे का ब्योरा रखने के लिए बनाया था।
    • तब केंद्र की तरफ से कहा गया था कि ये चंदे की पारदर्शिता के लिए है।
    • चुनावी बॉन्ड के तहत हर राजनीतिक दल को दी जाने वाली पाई-पाई का हिसाब-किताब बैंक से होगा।

    क्या चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले को कोई फायदा होता है?

    • चुनावी बॉन्ड खरीदकर किसी पार्टी को देने से ‘बॉन्ड खरीदने वाले’ को कोई फायदा नहीं होगा। न ही इस पैसे का कोई रिटर्न है।
    • ये अमाउंट पॉलिटिकल पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह है। इससे 80जीजी 80जीजीबी (ection 80 GG and Section 80 GGB) के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

    क्या इस बॉन्ड का पैसा खरीदने वाले को वापस मिलता है?

    • चुनावी बॉन्ड एक तरह की रसीद होती है। इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता।
    • इस बॉन्ड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिखते हैं।
    • इस बॉन्ड का पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मिल जाता है। इस बॉन्ड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता।
    • आप इस बॉन्ड को बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं लेकिन उसकी एक अवधि तय होती है।

    क्या असर होगा?

    • केंद्र सरकार का कहना है कि पारदर्शिता के लिए चुनावी बॉन्ड जरूरी है। काले धन पर रोक लगेगी।
    • चुनाव आयोग का कहना है कि इससे पारदर्शिता खत्म होगी और फर्जी कंपनियां खुलेंगी।
    • रिजर्व बैंक का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना से मनी लॉन्ड्रिंग का खतरा है। ब्लैक मनी को भी बढ़ावा मिलेगा।
    • इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे। यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे। इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता था।
    • हाल ही में 2 जनवरी से 11 जनवरी तक चुनावी बॉन्ड के लिए विंडो खोला गया था। 11 जनवरी को विंडो बंद हो गया था, जो चंदा आया होगा, वो 15 दिन में इनकैश हो गया था।
    • चुनावी बॉन्ड के लिए एक बार फिर विंडो खोली जानी थी। लेकिन कोर्ट के फैसले के चलते इसे टाल दिया था।
    • आम चुनाव से ठीक पहले चुनावी बॉन्ड पर रोक लग गई है। ऐसे में चुनावी चंदे लेने के प्लान पर राजनीतिक दलों को झटका लगा है।
    • राजनीतिक दलों को चंदे की समस्या से जूझना होगा। चुनाव में खर्च के लिए अन्य सोर्स पर बात करनी होगी।
    • आगे चंदा कैसे लिया जाएगा, इसका विकल्प तलाशना होगा। चुनाव आयोग से राय-मशविरा करनी होगी। कोर्ट से भी विकल्प देने की मांग की जा सकती है।