सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर छह दिसंबर को सुनवाई करने का फैसला किया है. अदालत का कहना है कि इस मामले पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार के तर्क सुनने के बाद इस मामले को सूचीबद्ध कर दिया.
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना में पारदर्शिता नहीं है जबकि केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि चुनावी बॉन्ड प्रणाली पूरी तरह से पारदर्शी है.
पीठ ने यह भी संकेत दिए कि वह मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने पर भी विचार करेगा. दरअसल याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया था कि इस मामले को अदालत की बड़ी बेंच के पास भेजा जाए.
मामला लोकतंत्र की नींव से जुड़ा
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सुझाव दिया था कि मामले की थ्रेसहोल्ड हियरिंग भी हो सकती है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने पीठ को मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं से अवगत कराया कि आखिर क्यों इस मामले पर जल्द सुनवाई की जरूरत है.
प्रशांत भूषण ने कहा कि यह मामला सिर्फ चुनावी बॉन्ड योजना तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे देश के लोकतंत्र की जड़ें भी जुड़ी हुई हैं. इस केस में इस पर भी चर्चा होनी है कि क्या राजनीतिक दलों को आरटीआई एक्ट के दायरे में लाया जाना चाहिए या नहीं.
उन्होंने कहा कि फॉरेन डिस्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट में संशोधन किया गया, जो कहता है कि विदेशी कंपनियों की सब्सीडियरी कंपनियों को विदेशी चंदे का स्रोत नहीं माना जाएगा. उन्होंने कहा कि इसमें पारदर्शिता नहीं है. हर किसी को विदेशी कंपनियों की सब्सीडियरी कंपनियों से विदेशी चंदा मिल सकता है.
वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने की मांग करते हुए कहा कि निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव संविधान का मूल तत्व है और राजनीतिक दलों की फंडिंग के लिए पारदर्शी तरीका अपनाया जाना चाहिए.
भूषण ने इस मामले पर जल्द सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा कि चुनाव आयोग जल्द ही गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों की तारीखों का ऐलान करने जा रहा है.
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आपत्ति जताते हुए कहा कि मौजूदा मामला चुनावी मुद्दा नहीं है.
इससे पहले अप्रैल में इस मामले को पूर्व चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच के समक्ष लाया गया था. पूर्व सीजेआई ने कहा था कि अगर कोरोना का प्रकोप नहीं होता तो इस पर सुनवाई हो जाती. हालांकि, पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताई थी लेकिन मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया था.
बता दें कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और अन्य ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर चुनावी बॉन्ड योजना में पारदर्शिता बरतने का हवाला दिया था.