देश में पिछले पांच सालों में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में करीब 1.29 मतदाताओं ने किसी पार्टी या निर्दलीय नेता को वोट देने की जगह NOTA (इनमें से कोई भी नहीं) में वोट दिया है।चुनाव अधिकार निकाय एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।ADR और नेशनल इलेक्शन वॉच ने साल 2018 से 2022 के दौरान हुए विभिन्न चुनावों में NOTA के वोटों का विश्लेषण किया है।
ADR की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच सालों में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कुल 1,29,77,627 लोगों ने NOTA का बटन दबाया है।राज्य विधानसभा चुनावों में NOTA को औसतन 64,53,652 वोट मिले हैं।विधानसभा चुनावों में साल 2020 में सबसे अधिक 1.46 प्रतिशत यानी कुल 7,49,360 लोगों ने NOTA का बटन दबाना चुना था।बिहार में कुल 7,06,252 और NCT दिल्ली चुनावों में कुल 43,108 लोटों ने NOTA में वोट डाला था।
NOTA में 2022 में सबसे कम वोट प्रतिशत रहा है। इस साल गोवा सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों सबसे कम लोगों ने NOTA को चुना।गोवा में 10,629, मणिपुर 10,349, पंजाब 1,10,308, उत्तर प्रदेश 6,37,304 और उत्तराखंड में 46,840 लोगों ने NOTA में वोट डाला था।इसी तरह 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक 7,42,134 और 2018 में मिजोरम विधानसभा चुनाव में सबसे कम 2,917 वोट NOTA में आए थे।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 में सबसे ज्यादा 1.98 प्रतिशत वोट NOTA में आए थे। इसी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 और मिजोरम विधानसभा चुनाव 2018 में सबसे कम 0.46 प्रतिशत वोट ही NOTA में पड़े थे।
निर्वाचन क्षेत्र के अनुसार, महाराष्ट्र के लातूर ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र के सबसे अधिक 27,500 लोगों ने NOTA का बटन दबाया है।इसके उलट अरुणाचल प्रदेश के ताली निर्वाचन क्षेत्र में सबसे कम नौ लोगों ने NOTA को वोट दिया है।अरुणाचल प्रदेश के दिरांग, अलॉन्ग ईस्ट, याचुली और नागालैंड के एक निर्वाचन क्षेत्र उत्तरी अंगामी में उम्मीदवार के सामने कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं होन के कारण किसी ने भी NOTA का बटन नहीं दबाया।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच साल में हुए लोकसभा चुनावों और उपचुनावों में कुल 65,23,975 यानी 1,06 प्रतिशत लोगों ने NOTA का बटन दबाया था।इसमें बिहार के गोपालगंज (SC) निर्वाचन क्षेत्र के सबसे अधिक 51,660 लोगों ने NOTA को वोट दिया, वहीं लक्षद्वीप के सबसे कम यानी 100 लोगों ने NOTA को वोट दिया था।इससे स्पष्ट है कि देश में सवा करोड़ से अधिक लोग वर्तमान राजनीति से दूर रहना चाहते हैं।
बता दें कि NOTA का मतलब है कि मतदाता खुद को उस चुनाव से अलग रखना चाहता है और किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता।हालांकि, वह अपने वोट का गलत इस्तेमाल होने से रोकने के लिए NOTA में वोट दे सकता है।2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद NOTA का विकल्प दिया गया था। इसका प्रयोग सबसे पहले 2013 में छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्यप्रदेश और दिल्ली विधानसभा चुनाव में किया गया था।