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Date: 
31.08.2017
City: 
New Delhi
 केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार महिलाओं की सुरक्षा या बेटी बचाओ के जितने भी दावे करे लेकिन चुने गए जनप्रतिनिधियों का इनके प्रति व्यवहार कुछ और ही कहानी बयां करता है। नेशनल इलेक्शन वाच न्यूज और एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म ने चुने गए 776 में से 774 सांसदों और देश के 4120 विधायकों में से 4078 के चुनाव लडने के दौरान दायर किए गए हलफनामे का मुआयना किया।
हलफनामे के अनुसार जो बात सामने निकल के आई वो चौंकाने वाली थी। इनमें 51 सांसदों और विधायकों ने हलफनामें में माना है कि उन्होंने महिलाओं से अत्याचार किया या उनके खिलाफ महिलाओं से अपराध के मामले दर्ज हैं।
इनमें महिलाओं के प्रति ज्यादा उदार दिखने वाली बीजेपी के सांसद और विधायक सबसे ज्यादा हैं। कुल 51 में से 14 सांसद और विधायक इसी पार्टी के हैं जबकि केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना के 7 सांसद और विधायक इसमें शामिल हैं। तीसरा नंबर पश्चिम बंगाल के प्रति ममता दिखाने वाली ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का है जिसके छह सांसद और विधायक इस अपराध में शामिल हैं।
 
सर्वे की मुख्य बातें 
सर्वे के अनुसार हलफनामे में 33 प्रतिशत यानि 1581 सांसदों विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें 51 पर महिलाओं पर किए अत्याचार या अपराध हैं। इन 51 में तीन सांसद और 48 विधायक हैं। अनाधिकृत राजनीतिक पार्टियों ने 334 ऐसे लोगों को चुनाव में टिकट दिया जिनके खिलाफ महिलाओं के प्रति अपराध के मामले दर्ज थे। इसके अलावा 122 ऐसे निर्दलीय प्रत्याशी थे जिन्होंने पिछले पांच साल में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा का चुनाव लडा जो महिलाओं के खिलाफ अपराध करने के श्रेणी में आते हैं।
इसके अलावा महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में 40 ऐसे लोग हैं जिन्हें राजनीतिक दलों ने लोकसभा या राज्यसभा में अपना प्रत्याशी बनाया। महिलाओं के खिलाफ अपराध मामले में 294 लोग विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक दलों की ओर उतारे गए।
पिछले पांच साल में 19 निर्दलीय प्रत्याशियों ने लोकसभा और राज्यसभा का चुनाव लड़ा। महिलाओं के खिलाफ अपराध का मामला झेल रहे 103 लोग विधानसभा का चुनाव लडे।
ऐसे लोगों की संख्या महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा है जो महिलाओं के खिलाफ अपराध का मामला झेल रहे हैं। महाराष्ट्र के 12 सांसद और विधायक, पश्चिम बंगाल के 11 सांसद और विधायक, उडीसा के 6 सांसद और विधायकों के खिलाफ ऐसे मामले हैं।
महाराष्ट्र में 65, बिहार में 62, पश्चिम बंगाल में 52 ऐसे लोगों को राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार बनाया जिनके खिलाफ महिलाओं के प्रति अपराध के मामले दर्ज हैं।
पिछले पांच साल में बीजेपी ने 48 ऐसे लोगों को विधानसभा में प्रत्याशी बनाया जो महिलाओं के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आते हैं। दूसरा नंबर बसपा का आता है जिसकी मुखिया एक महिला हैं। बसपा की प्रमुख मायावती ने अपने खिलाफ एक बयान को लेकर संसद से लेकर सडक तक तूफान खडा कर दिया था। तीसरा नंबर कांग्रेस का जिसके 27 प्रत्याशी इस श्रेणी में आते हैं।
इसके अलावा 4 ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ तो बलात्कार का मामला है। ये हैं तेलुगू देशम पार्टी के जी.सूर्यनारायण, उडीसा के बीजापुर से कांग्रेस के सुबल साहू, बीजेपी के गुजरात के सेहरा से जेठाभाई जी अधीर और लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनतादल के झंझारपुर से विधायक गुलाब यादव।
पिछले पांच साल में अधिकृत पार्टियों ने 29 ऐसे लोगों को टिकट दिया जिनके खिलाफ रेप के मामले चल रहे हैं। इसके अलावा 14 निर्दलीय प्रत्याशियों ने पांच साल में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लडा।
सिफारिशें 
लगभग सभी राजनीतिक दलों से ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाया जिन पर रेप के मामले चल रहे हैं। अधिकतर मामलों में अदालत ने खुद संज्ञान लिया। राजनीतिक दल चाहें तो इसे कम कर सकती हैं। ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाने से बच सकती हैं। ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाने से महिलाओं में असुरक्षा की भावना पनपती है।
आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगो को चुनाव लडने से वंचित किया जाना चाहिए ।
राजनीतिक दल बताएं कि चुनाव में टिकट देने का उनका पैमाना क्या होगा?
आपराधिक मुकदमें झेल रहे सांसद, विधायकों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिए और उसका निपटारा भी समय से होना चाहिए।
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