भारत की राजनीतिक पार्टियां लगातार अमीर होती जा रही हैं. 11 साल में 700 फ़ीसदी की बढ़त के साथ बीजेपी देश की सबसे अमीर पार्टी बन गई है.
एडीआर यानी एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि राजनीतिक पार्टियों के रिज़र्व फ़ंड में पिछले ग्यारह साल में ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है. रिज़र्व फ़ंड उस राशि को कहते हैं जो कुल संपत्ति में से देनदारी घटाने के बाद पार्टी के पास बचती है. रिपोर्ट के मुताबिक़,
- बीजेपी 2015-16 में देश की सबसे अमीर पार्टी बन गई
- 2004-05 से 15-16 के बीच बीजेपी की संपत्ति में 627 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ
- बीजेपी ने 2004-05 में तक़रीबन 123 करोड़ की संपत्ति ज़ाहिर की थी, जो 2015-16 में बढ़कर लगभग 894 करोड़ हो गई
- बीजेपी की कुल देनदारी 24 करोड़ बताई गई है यानी पार्टी के रिज़र्व फ़ंड में साल 2015-16 तक 868 करोड़ रुपये थे
- इन्हीं सालों में कांग्रेस की संपत्ति 167 करोड़ से बढ़कर 758 करोड़ हो गई
- लेकिन 329 करोड़ की सबसे बड़ी देनदारी के चलते, रिज़र्व फ़ंड के मामले में कांग्रेस पिछड़ गई
- बीजेपी के बाद सबसे बड़ा रिज़र्व फ़ंड बहुजन समाज पार्टी के पास है, जो इन ग्यारह सालों के दौरान 43 करोड़ से बढ़कर 557 करोड़ पर पहुंच गया
- मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तीसरे नंबर पर है. उसका रिज़र्व फ़ंड 432 करोड़ बताया गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ बीजेपी को ये बढ़त 2014-15 यानी पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही मिलनी शुरू हुई. उससे पहले तक कांग्रेस शीर्ष पायदान पर क़ाबिज़ रही.
अन्य संपत्ति - एक पहेली
सभी दलों की घोषित की गई कुल संपत्ति का 59 फ़ीसदी अन्य संपत्तियों में दिखाया गया है. अन्य संपत्ति यानी अदर एसेट वह होती हैं जिनके बारे में जानकारी देने के लिए पार्टियां बाध्य नहीं होतीं.
एडीआर के नेशनल कोऑर्डिनेटर अनिल वर्मा ने बीबीसी से बातचीत में बताया, ''अगर आप देखें तो बाकी सभी हेड्स में ऐसा कोई बड़ा इज़ाफ़ा नहीं हुआ है, लेकिन अदर एसेट्स 108 करोड़ से 1605 करोड़ हो गया है. इसकी जो अदर एसेट्स की डिटेल्स होनी चाहिए कि अदर एसेट्स में क्या है वो डिटेल्स इऩ रिपोर्ट्स में किसी की भी नहीं मिलती.''
यह पूरी तस्वीर नहीं
ये सिर्फ़ घोषित संपत्ति के आंकड़े हैं. इससे किसी पार्टी की कुल संपत्ति का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता. नामालूम स्रोत से आने वाले चंदे से जुड़ी कोई जानकारी इसमें शामिल नहीं है.
नामालूम चंदा वह चंदा है जो एक तय राशि से कम होता है और पार्टियों के लिए उसे ज़ाहिर करने की मजबूरी नहीं होती. एडीआर की ही एक और रिपोर्ट में बताया गया था कि कांग्रेस और बीजेपी की कुल कमाई का लगभग 77 फ़ीसदी नामालूम स्रोत से ही आता है.
पिछले साल तक पार्टियों को 20 हज़ार रुपये से कम के किसी भी चंदे के बारे में जानकारी देने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन इस साल बजट में सरकार ने इस राशि को घटाकर दो हज़ार रुपये कर दिया था. सरकार के मुताबिक़ उन्होंने यह कदम राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उठाया.
क्या बढ़ेगी पारदर्शिता?
अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरूण कुमार को नहीं लगता कि ऐसा करने से चंदे में पारदर्शिता बढ़ेगी. बीबीसी से बात करते हुए प्रोफ़ेसर अरूण कुमार ने कहा, ''पारदर्शिता तो टोटल अकाउंट पर लागू होनी चाहिए. टोटल एसेट्स में तो वह सिर्फ़ एक हिस्सा डिक्लेयर करते हैं तो पारदर्शिता तो दूर की बात है. मेरा मानना है कि सिर्फ़ लिमिट चेंज करने से नहीं होगा. ये तो जब तक कि पॉलिटिकल पार्टी एग्री नहीं करती हैं, कन्सेन्सस नहीं बनाती हैं कि वो ग़लत फ़ैसला नहीं लेंगी तब तक यह मसला हल होने वाला नहीं है.''
बीजेपी काला धन ख़त्म करने और पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने पर ज़ोर देती रही है. इस रिपोर्ट के बाद बीबीसी ने बीजेपी से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बातचीत के लिए कोई उपलब्ध नहीं हो सका.
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