लोकसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या 10% से भी कम है। ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' (ADR) के अनुसार उसने 8,337 उम्मीदवारों का विश्लेषण किया जिनमें से महिलाएं केवल 797 हैं जो कि चुनाव के सात चरणों में मैदान में उतरे कुल उम्मीदवारों का मात्र 9.5% है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में महिला प्रत्याशियों की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है। चुनाव अधिकारों से जुड़े विषयों पर काम करने वाली एक संस्था ने अपने विश्लेषण में यह जानकारी साझा की। ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) के अनुसार उसने 8,337 उम्मीदवारों का विश्लेषण किया जिनमें से महिलाएं केवल 797 हैं जो कि चुनाव के सात चरणों में मैदान में उतरे कुल उम्मीदवारों का मात्र 9.5 प्रतिशत है। लोकसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने वाला महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद यह पहला चुनाव है।
हालांकि, यह विधेयक अभी लागू नहीं हुआ है। पहले चरण के चुनाव के दौरान 1,618 उम्मीदवारों में से केवल 135 महिलाएं थीं। बाद के चरणों में भी ऐसा ही जारी रहा। दूसरे चरण में भाग लेने वाले 1,198 उम्मीदवारों में से 1,192 के हलफनामों का विश्लेषण किया गया, जिनमें 100 से अधिक महिलाएं थीं। तीसरे चरण में 1,352 उम्मीदवार थे, जिनमें महिलाओं की संख्या महज 123 थी। चौथे चरण में हिस्सा लेने वाले 1,717 उम्मीदवारों में से 1,710 के हलफनामों का विश्लेषण किया गया, जिनमें 170 महिलाएं थीं।
पांचवें चरण में सबसे कम 695 उम्मीदवार थे जिनमें 82 महिलाएं थीं, जबकि छठे चरण के 869 उम्मीदवारों में से 866 के हलफनामों का विश्लेषण किया गया और इसमें 92 महिलाएं हैं। सातवें चरण के लिए 904 उम्मीदवार होंगे, जिनमें केवल 95 महिलाएं हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘जीसस एंड मैरी कॉलेज’ की प्रोफेसर डॉ. सुशीला रामास्वामी ने इस बात पर बल दिया है कि राजनीतिक दलों को महिलाओं की उम्मीदवारी को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘राजनीतिक दलों को अधिक सक्रिय होना चाहिए था तथा अधिक महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहिए था।” उन्होंने पार्टी के भीतर महिलाओं के लिए सीट आरक्षण की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला, जैसा कि ब्रिटेन की लेबर पार्टी में है।