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Date: 
15.10.2020
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एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) की तरफ से गुरुवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में कॉरपोरेट और व्यापारिक घरानों ने देश के तमाम राजनीतिक दलों को कम से कम 876 करोड़ रुपये का दान दिया है. एडीआर की रिपोर्ट में इस बात का भी दावा किया गया है कि चंदा हासिल करने में सबसे आगे बीजेपी रही, लिस्ट में इसके बाद कांग्रेस का नाम है.

एडीआर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में बीजेपी को 698 करोड़ का चंदा उद्योगपतियों से मिला है. जबकि कांग्रेस को कुल 122.5 करोड़ रुपये मिले और वह इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर रही. चुनाव आयोग द्वारा सार्वजनिक किए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए एडीआर ने कहा कि सभी दलों को दानदाताओं और दान के बारे में विवरण प्रकट करना आवश्यक है अगर वह एक वित्तीय वर्ष में 20,000 रुपये से ऊपर का है.

एडीआर की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि देश के राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा चंदा उद्योगपतियों से ही मिला है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉरपोरेट्स और कारोबारी घरानों द्वारा किए गए कुल 876.10 करोड़ रुपये का दान वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान विभिन्न राष्ट्रीय दलों को प्राप्त कुल दान का लगभग 92 प्रतिशत था.

एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच राष्ट्रीय दलों में से बीजेपी को 1573 कॉरपोरेट दाताओं से 698.082 करोड़ रुपये का दान मिला जो लिस्ट में अधिकतम था, इसके बाद कांग्रेस को 122 कॉरपोरेट्स के जरिए 122.5 करोड़ रुपये का कुल योगदान मिला, और 17 कॉर्पोरेट दानदाताओं से एनसीपी को 11.345 करोड़ रुपये मिले.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल 319 दान जिसके माध्यम से राष्ट्रीय दलों को 31.42 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, का योगदान फॉर्म में विवरण ही नहीं है. इसके अलावा राष्ट्रीय दलों को मिले 34 दान में उन्होंने 13.57 करोड़ रुपये प्राप्त किए हैं, लेकिन उनके योगदान फॉर्म में पैन विवरण नहीं हैं. अपनी सिफारिशों में एडीआर ने कहा कि जिन दानदाताओं ने एक या एक से अधिक दान के रूप में न्यूनतम 20,000 रुपये दान किए हैं, उन्हें अपना पैन विवरण प्रदान करना चाहिए.

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय पार्टियों द्वारा 274 कॉरपोरेट दाताओं से बिना पैन नंबर की जानकारी के कुल 13.364 करोड़ रुपये दान मिले हैं. इसे लेकर एडीआर ने कहा है, "इस तरह के अधूरे योगदान की रिपोर्ट चुनाव आयोग द्वारा पार्टियों को वापस की जानी चाहिए, ताकि उन्हें अधूरी जानकारी प्रदान करने से रोका जा सके.

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