Skip to main content
Source
Dainik Bhaskar
Author
अनिरुद्ध शर्मा
Date
City
New Delhi

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के को-फाउंडर और चुनाव सुधारों के प्रबल समर्थक प्रो. जगदीप एस छोकर का शुक्रवार सुबह दिल्ली में हार्ट अटैक से निधन हो गया। वे 81 साल के थे। प्रो. छोकर की इच्छा के अनुसार उनका शरीर रिसर्च के लिए लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को डोनेट किया गया है।

IIM अहमदाबाद में प्रोफेसर रहे छोकर ने 1999 में एडीआर की स्थापना की। इसके जरिए चुनावी पारदर्शिता के लिए कई कानूनी लड़ाइयां लड़ीं। उम्मीदवारों के बैकग्राउंड का खुलासा व इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम रद्द कराने जैसे सुधार उनकी कोशिशों के चलते ही संभव हो सके।

उनकी इस प्रेरक यात्रा के बारे में बता रहे हैं एडीआर के प्रमुख रिटायर्ड मेजर जनरल अनिल वर्मा...

  • बीते दो दशक में प्रो. छोकर की अगुवाई में प्रत्याशियों का ब्योरा सामने लाना, दोषी ठहराए गए सांसदों व विधायकों की अयोग्यता, राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न सार्वजनिक कराना, पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाना, नोटा बटन और इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना खत्म करना... ऐसे सुधार थे, जो देश के चुनावी इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए।
  • यह बदलाव 1999 में शुरू हुआ...आईआईएम के कुछ प्रोफेसर इस बात से बेहद खफा थे कि राजनीति में आपराधिक तत्व बढ़ते जा रहे हैं। उनमें से एक थे प्रो. जगदीप छोकर। उनका मानना था कि कंपनियों की बैलेंस शीट की तरह ही नेताओं की कैरेक्टर शीट भी उजागर होनी चाहिए।
  • इसी सोच पर प्रो. त्रिलोचन शास्त्री के सुझाव पर 11 प्रोफेसर व छात्रों ने मिलकर एडीआर की नींव रखी। इन संस्थापकों में सबसे सीनियर थे प्रो. जगदीप छोकर। उनका मानना था कि देश का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा, जब मतदाता को पूरी जानकारी होगी कि उसके सामने खड़ा उम्मीदवार कौन है।
  • छोकर अंतिम समय तक भारतीय राजनीति को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के मिशन में जुटे रहे। एडीआर ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिसमें यह दलील दी गई कि मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि उसका प्रत्याशी कौन है, उस पर आपराधिक मामला तो नहीं है, उसकी संपत्ति क्या है, देनदारियां क्या हैं, आय कैसे होती है, कितना पढ़ा लिखा है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और ऐतिहासिक फैसला आया जिससे हर प्रत्याशी को पर्चे के साथ एफिडेविट देना अनिवार्य हुआ जिसमें उसे अपना ब्योरा देना होता है।
  • गुजरात चुनाव में पहली बार इलेक्शन वॉच शुरू किया तो प्रो. छोकर हाथ से पूरी रिपोर्ट बनाते थे और जब एफिडेविट आने लगे तो प्रो. छोकर व एडीआर की टीम इनका विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार करने लगी।’
  • 2013 में जब चुनाव आयोग से लेकर पार्टियां तक सभी नोटा बटन के खिलाफ थे। पर प्रो. छोकर ने इसे लोकतांत्रिक अधिकार मानकर कोर्ट में आवाज उठाई। आखिरकार ईवीएम में नोटा का बटन शामिल हो गया। वे अक्सर मजाक में कहते थे कि अब जनता को मजबूरी में किसी को चुनना नहीं पड़ेगा, मना करने का भी विकल्प है।
  • इंजीनियरिंग के बाद रेलवे में नौकरी शुरू की और फिर एमबीए व अमेरिका से पीएचडी करके अध्यापन के क्षेत्र में आए छोकर काम को लेकर संजीदा थे। इसकी मिसाल देखिए ...एडीआर की स्थापना के बाद और रिटायरमेंट से सालभर पहले एलएलबी इसलिए की ताकि कोर्ट में दायर जनहित याचिकाओं को बारीकी से पढ़ सकें, अच्छी तरह समझ सकें और चुनौती देने के लिए पर्याप्त कानूनी तैयारी कर सकें।
  • बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन शुरू हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिकाओं में प्रिंसिपल पिटीशन फाइल करने वाली संस्था एडीआर ही थी। उनका मानना था कि अगर वोटर लिस्ट ही साफ-सुथरी नहीं होगी तो चुनाव की पूरी वैधता पर ही सवाल उठेगा। इस मामले में अभी अंतिम फैसला आना बाकी है।

इन सुधारों के पीछे प्रो. छोकर थे, कभी पता नहीं चलने दिया- योगेंद्र यादव

जब प्रो. छोकर सहित 11 प्रोफेसर ने मिलकर एडीआर बनाया तो मुझे लगा कि प्रोफेसर लोग देश का लोकतंत्र क्या बदलेंगे और दो-चार कोर्ट केस से क्या फर्क पड़ जाएगा, पर मैं गलत साबित हुआ। एडीआर के संस्थापक और खासकर प्रो. छोकर जिस शिद्दत के साथ कोर्ट में केस लेकर गए, नतीजतन उम्मीदवारों को जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश आया। इतना ही नहीं, जब एफिडेविट आने लगे, उसे रातोंरात जनता तक पहुंचाने का काम भी एडीआर ने किया।

दलों के अकाउंट चेक ​किए उनकी गड़बड़ियां सामने भी लाए। सभी पार्टियां और सरकारें इनसे परेशान हुईं। एडीआर के इन कामों के प्रेरक रहे जगदीप छोकर। बेहद शांत, संयत व बिना स्वार्थ सिर्फ अपने काम में लगे रहने वाले छोकर ने प्रचार की इच्छा नहीं जताई। इसलिए चुनाव सुधारों के बड़े काम के पीछे किसका नाम था, किसी को पता नहीं चला। बस इतनी लगन थी कि देश का भला हो जाए।

रिटायर होने के बाद कोई कुर्सी नहीं, कोई लाभ नहीं। अपना पैसा, समय और ऊर्जा लगाकर छोकर साहब ने लोकतंत्र के लिए लगातार जुटे रहे। 2024 के चुनाव में जब फॉर्म 17 नहीं आया तो वे बोले। इस साल एसआईआर आया तो सबसे पहले पहुंचने वाले प्रो. छोकर थे, उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में मामले की प्रिंसिपल पिटिशन बनी।


abc