‘प्रजा ही प्रभु है। Citizens are the masters in a democracy.’
ये इलेक्शन रिफॉर्म के लिए काम करने वाले ऑर्गेनाइजेशन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR की वेबसाइट की पहली लाइन है।
शुक्रवार, 12 सितंबर को ADR के फाउंडिंग सदस्यों में से एक प्रो. जगदीप सिंह छोकर का निधन हो गया। उन्हें चुनाव सुधारों का प्रबल समर्थक माना जाता था।
81 साल के छोकर ने दिल्ली के एक अस्पताल में आखिरी सांस ली। हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हुई। प्रो. छोकर की इच्छा के अनुसार उनका शरीर रिसर्च के लिए लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को डोनेट किया गया है।
बीते 25 सालों में प्रो. छोकर की अगुवाई में किए गए सुधार देश के चुनावी इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए। इसमें लोकसभा और विधानसभा के प्रत्याशियों का ब्योरा सामने लाना, दोषी ठहराए गए सांसदों व विधायकों की अयोग्यता, राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न सार्वजनिक कराना, पार्टियों को RTI के दायरे में लाना, नोटा बटन और इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना खत्म करना आदि शामिल है।

जगदीप सिंह छोकर का जन्म पंजाब के खरड़ (अब साहिबजादा अजीत सिंह नगर जिला में है) में हुआ था। उनके पिता का नाम रघबीर सिंह और मां का नाम चंदर कला था।

1990 के दशक की बात है इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट यानी IIM अहमदाबाद और बेंगलुरु के कुछ प्रोफेसर इस बात से बेहद खफा थे कि राजनीति में आपराधिक तत्व बढ़ते जा रहे हैं। उनमें से एक थे बिहेवियरल साइंस के प्रो. जगदीप छोकर। उनका मानना था कि कंपनियों की बैलेंस शीट की तरह ही नेताओं की कैरेक्टर शीट भी उजागर होनी चाहिए।
इसे लेकर IIM बेंगलुरु के प्रो. त्रिलोचन शास्त्री और उनके साथियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की। इस याचिका में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के क्रिमिनल, फाइनेंशियल और एजुकेशनल बैकग्राउंड को पब्लिक करने की मांग की गई थी। याचिका दायर करते समय हाईकोर्ट की सीनियर एडवोकेट कामिनी जायसवाल ने उन्हें एक संगठन बनाने का सुझाव दिया।
इस सुझाव के आधार पर त्रिलोचन शास्त्री, जगदीप छोकर और अजीत रानाडे समेत 11 प्रोफेसर और छात्रों ने मिलकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की नींव रखी।
2 नवंबर, 2002 को दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई PIL पर जजमेंट आया। इसमें कहा गया कि लोकसभा और विधानसभा के हर उम्मीदवार को एक हलफनामा यानी एफिडेविट देना होगा, जिसमें उनकी शिक्षा, आमदनी और संपत्ति, देनदारियां और उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी हो।
हालांकि भारत सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 और बाद में 2003 में यह अनिवार्य कर दिया कि चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को नामांकन से पहले निर्वाचन आयोग को शपथपत्र (affidavit) देकर अपनी क्रिमिनल, फाइनेंशियल और एजुकेशनल बैकग्राउंड की जानकारी देनी होगी।
EVM में NOTA ऑप्शन लाए
2013 में जब चुनाव आयोग से लेकर पार्टियां तक सभी नन ऑफ द एबव यानी NOTA बटन के खिलाफ थे। पर प्रो. छोकर ने इसे लोकतांत्रिक अधिकार मानकर कोर्ट में आवाज उठाई। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने NOTA के विकल्प को मंजूरी दे दी। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM में NOTA विकल्प मिलने के साथ ही वोटर्स को सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार हासिल हुआ।
इलेक्टोरल बॉन्ड खत्म कराने में भूमिका
मोदी सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत की। इसे जनवरी 2018 में कानूनी रूप से लागू किया गया। इसके तहत भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से इन्हें खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था।
जगदीप छोकर ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कहा था कि गुमनाम चंदे को इजाजत देना लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए खतरा है। ADR की ओर से जगदीप छोकर ने इसे लीड किया। साल 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना असंवैधानिक है।
SIR मामले में याचिका दायर की
बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR शुरू हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिकाओं में प्रिंसिपल पिटीशन फाइल करने वाले जगदीप छोकर और उनकी संस्था ADR ही थी।
उनका मानना था कि अगर वोटर लिस्ट ही साफ-सुथरी नहीं होगी तो चुनाव की पूरी वैधता पर ही सवाल उठेगा। ऐसे में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को स्वीकार करना पड़ा कि 12वें दस्तावेज के रूप में आधार कार्ड को स्वीकार किया जाएगा। हालांकि, इस मामले में अभी अंतिम फैसला आना बाकी है।
पक्षियों के प्रति अपार प्रेम था
प्रो. छोकर के जीवन का एक कम ज्ञात पहलू था पक्षियों के प्रति उनका प्रेम। उन्होंने साल 2001 में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से ऑर्निथोलॉजी (पक्षी विज्ञान) में सर्टिफिकेट हासिल किया था। वो IIM-अहमदाबाद कैंपस और जहां-जहां भी यात्रा करते थे, वहां पक्षियों की कंपनी को एंजॉय करते थे।
इंटरनेशनल जर्नलों में रिसर्च पेपर पब्लिश हुए
प्रो. छोकर एक राइटर और रिचर्सर भी थे। उनके रिसर्च कई इंटरनेशनल जर्नलों में पब्लिश हुए। इनमें जर्नल ऑफ एप्लाइड साइकोलॉजी, कोलंबिया जर्नल ऑफ वर्ल्ड बिजनेस (अब जर्नल ऑफ वर्ल्ड बिजनेस), इंटरनेशनल लेबर रिव्यू, इंडस्ट्रियल रिलेशंस और जर्नल ऑफ सेफ्टी रिसर्च शामिल है।
अंतिम संस्कार के बजाय देहदान का फैसला किया
प्रो. छोकर का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा क्योंकि उन्होंने देहदान का फैसला किया था। मरणोपरांत उनकी बॉडी को लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को डोनेट किया गया है। यहां उस पर रिसर्च और अन्य काम किए जाएंगे।
