चुनाव विश्लेषण संस्था एडीआर के सह-संस्थापक जगदीप एस छोकर का दिल्ली में निधन हो गया। उन्होंने 1999 में एडीआर की स्थापना की थी। छोकर ने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और संपत्ति का खुलासा अनिवार्य कराया। उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चुनाव से संबंधित विश्लेषण करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ( एडीआर ) के सह-संस्थापक और लंबे समय से स्वच्छ चुनावों के पैरोकार रहे जगदीप एस छोकर का शुक्रवार को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होंने 1999 में एडीआर की स्थापना की थी। इसके बाद उन्होंने कई बड़े चुनाव सुधारों में अहम भूमिका निभाई। जानते उन्होंने चुनाव से जुड़े कौन से 5 महत्वपूर्ण सुधारों में अहम भूमिका निभाई...
25 नवंबर, 1944 को जन्मे छोकर ने शिक्षा जगत में आने से पहले भारतीय रेलवे में अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के एफएमएस से एमबीए किया और बाद में अमेरिका की लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
IIM अहमदाबाद में रहे डीन और प्रभारी निदेशक
वह 1985 में आईआईएम-अहमदाबाद से जुड़े और 2006 में अपनी सेवानिवृत्ति तक संगठनात्मक व्यवहार के क्षेत्र में अध्यापन करते रहे। छोकर ने आईआईएम-अहमदाबाद में अपने कार्यकाल के दौरान डीन और प्रभारी निदेशक के रूप में भी कार्य किया।
प्रत्याशियों की डिटेल
पिछले दो दशकों में, जगदीप एस छोकर की इस संस्था ने कई ऐतिहासिक न्यायिक हस्तक्षेप में भूमिका निभाई है जिससे भारतीय राजनीति में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही आई है। इनमें 2002 का उच्चतम न्यायालय का फैसला शामिल है, जिसमें उम्मीदवारों के लिए अपने आपराधिक मामलों, संपत्तियों और शैक्षणिक योग्यताओं का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया गया था। इसमें 2024 में चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द करने का फैसला भी शामिल है।
इलेक्टोरल बॉन्ड खत्म कराना
जगदीप छोकर ने इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई। उन्होंने कहा था, गुमनाम चंदे को इजाजत देना यह लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए खतरा है। एडीआर की ओर से जगदीप छोकर ने इसका नेतृत्व किया। 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना असंवैधानिक है।
पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाना
जगदीप छोकर ने पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाने की सिफारिश भी की। 2019 में राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए इसी तरह की याचिका दायर की थी ताकि उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके और चुनावों में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाया जा सके। इसके बाद यह मामला इस वर्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। उन्होंने कहा था, जब भारत के मुख्य न्यायाधीश तक सूचना के अधिकार के अंतर्गत आते हैं तो पार्टियों को क्यों नहीं आना चाहिए?
ईवीएम में नोटा विकल्प
चुनाव सुधार के प्रबल समर्थक जगदीप छोकर ने ईवीएम में नन ऑफ द एबव यानी नोटा विकल्प की मांग की थी, जिसे साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी। इससे मतदाताओं को सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने का अधिकार प्राप्त हो गया।
SIR प्रक्रिया पर सवाल
जगदीप छोकर ने बिहार में हो रहे स्पेशल इंटेसिव रिवीजन पर सवाल उठाए, उन्होंने मतदाता सूची से नाम हटाने के नियमों को चुनौती दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी नामों की जांच के लिए दिशा निर्देश जारी किए। इससे लाखों मतदाताओं को राहत मिली।
जगदीप छोकर निधन पर राजनीतिक और सार्वजनिक क्षेत्र के अनेक लोगों की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की गई। पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘प्रोफेसर जगदीप छोकर का निधन दुखद है। उन्होंने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स का नेतृत्व किया, जिसने चुनावी लोकतंत्र के उच्च मानकों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके और एडीआर जैसे लोग प्राधिकारों से सवाल पूछने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो किसी भी लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है।’’
