आम आदमी पार्टी को मिले चुनावी चंदे पर भले ही इसी साल तीखी सियासी जंग हुई हो, मगर हकीकत यह है कि राजनीतिक दलों को अपने अधिकतर चंदा देने वाले लोगों की जानकारी ही नहीं होती।
चुनाव आयोग के समक्ष राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से पेश किए गए ऑडिट रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि इन्हें अपने 80 फीसदी चंदा देने वालों की कोई जानकारी ही नहीं होती।
दरअसल महज बीस हजार रुपये से अधिक राशि का दान करने वाले लोगों की ही सभी सूचनाएं उपलब्ध कराने की कानूनी मजबूरी से बचने के लिए सियासी दल अज्ञात स्रोतों अर्थात कूपनों की बिक्री, पर्स मनी, सहायता कोष, अनुदान जैसे रास्तों से धन हासिल होने की जानकारी देते हैं।
नेशनल इलेक्शन वाच की रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा को छोड़कर अन्य पांच राष्ट्रीय दलों कांग्रेस, बसपा, माकपा, भाकपा और राकांपा को वर्ष 2013-14 के दौरान करीब 841 करोड़ रुपये की आय हुई थी। इनमें अकेले कांग्रेस की भागीदारी करीब 71 फीसदी थी।
भाजपा ने अब तक चुनाव आयोग को इस आशय का कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया है। संस्था ने चुनाव में काले धन के प्रयोग को रोकने के लिए सियासी दलों की चंदे की जांच के लिए सख्त व्यवस्था बनाने की मांग की है।
जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2013-14 में कांग्रेस को 598 करोड़, बसपा को करीब 67 करोड़, माकपा को 122 करोड़, राकांपा को 56 करोड़ और सीपीआई को 2.5 करोड़ रुपये की आय हुई।
इन राष्ट्रीय दलों ने दावा किया है कि इनमें से करीब 80 फीसदी आय उन्हें कूपनों की बिक्री जैसी प्रक्रिया से हासिल हुई। इन दलों का कहना है कि उन्हें चंदा देने वालों में महज 20 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिन्होंने बीस हजार रुपये से अधिक का चंदा दिया है। बसपा का तो दावा है कि उसे चंदा देने वालों में बीस हजार रुपये से अधिक राशि दान करने वाला कोई था ही नहीं।