उच्चतम न्यायालय ने सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लाने के लिए ‘सार्वजनिक प्राधिकार’ घोषित करने की मांग संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भाजपा एवं कांग्रेस सहित छह पार्टियों से जवाब मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति अरूण कुमार मिश्रा तथा न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की खंडपीठ ने आज कहा, ‘‘नोटिस जारी की जाती है।’’
गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म’ (एडीआर) ने सर्वोच्च अदालत से मांग की है कि राजनीतिक दलों से कहा जाए कि वे सभी चंदों के बारे में सूचना दें जिसमें 20000 रुपये से कम भी शामिल हो।
एडीआर की ओर से उपस्थित वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और ऐसे में वे आरटीआई कानून के प्रति उत्तरदायी हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने विस्तृत आदेश में कहा था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और ऐसे में उन्हें सूचना के अधिकार के कानून तहत सूचना देनी चाहिए।
वकील ने कहा, ‘‘राजनीतिक दलों को चंदे पर आयकर नहीं देना पड़ता और इससे अलावा 20,000 रुपये से कम के चंदे का कानून के तहत खुलासा भी नहीं करना पड़ता।’’
उन्होंने कहा कि ये राजनीतिक दल विधायिका और विधि निर्माण प्रक्रिया पर भी नियंत्रण करते हैं।
इससे पहले गैर सरकारी संगठन एडीआर ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की थी। उसने दावा किया था कि राजनीतिक दलों को चंदों रूप में तथा कॉरपोरेट, ट्रस्ट एवं व्यक्तियों से भारी-भरकम रकम मिलती है, हालांकि वे ऐसे चंदों के स्रोत के बारे में पूरी सूचना का खुलासा नहीं करते हैं।
अपनी याचिका में एडीआर ने देश की सबसे बड़ी अदालत से आग्रह किया था कि वह सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के लिए अपनी आय के बारे में विस्तृत जानकारी का खुलासा करने को अनिवार्य बनाए। उसने चंदे और धन प्राप्ति का संपूर्ण विवरण घोषित करने की भी मांग की है।
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