Source: 
नवभारत
http://navbharattimes.indiatimes.com/mumbaiarticleshow/7307151.cms
Date: 
18.01.2011

देश की लचर होती जा रही चुनावी प्रक्रिया में आमूल-चूल बदलाव के लिए केंद्र सरकार इन दिनों कई गंभीर और दिलचस्प सुझावों पर विचार कर रही है। अगर इन सुझावों पर अमल हुआ तो राजनैतिक पार्टियों के लिए अपने खातों का कैग द्वारा ऑडिट, करवाना जरूरी हो जाएगा। यही नहीं, उनको मिलनेवाले अनाप-शनाप चंदे पर भी लगाम लगने की उम्मीद है।

गौरतलब है, अडिशनल सॉलिसिटर जनरल विवेक तनखा की अगुवाई में गठित 'कोर कमिटी फॉर इलेक्टोरल रिफॉर्म्स' इन दिनों विशेषज्ञों के साथ रीजनल मीटिंग्स ले रही है। इसी सिलसिले में रविवार को मुंबई यूनिवर्सिटी में हुई मीटिंग में महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।

कुकुरमुत्ते की तरह उग आई पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करके पार्टिठों के गठन के लिए कठोर नियम बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। मीटिंग में मौजूद बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील राजेश बिंद्रा के मुताबिक, 'देश में इस समय 1200 रजिस्टर्ड राजनैतिक पार्टियां हैं, लेकिन चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा नहीं उतरतीं। इससे लोगों का चुनावी प्रक्रिया से यकीन उठ जाता है। कमिटी को मिले गंभीर सुझावों में से एक है पार्टियों के रजिस्ट्रेशन के सख्त नियम।'

मीटिंग में मौजूद 'असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' के राज्य प्रमुख अजित रानाडे ने एनबीटी से बताया, 'अपने सालों पुराने आग्रह को, कि ईवीएम पर 'इनमें से कोई नहीं' का बटन हो, हमने कमिटी के सामने रखा ताकि लोग सांपनाथ नहीं तो नागनाथ को चुनने की मजबूरी से बच सकें। हमने यह भी कहा है कि चुनाव खर्च में प्रत्याशी के साथ पार्टी का खर्च भी जोड़ा जाए। प्रत्याशी संपत्ति घोषित करें तो आय के स्रोत का भी खुलासा करना जरूरी हो।'

मीटिंग में मौजूद विधि मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने एनबीटी को बताया, 'कमिटी को मिले सुझावों पर मंत्रालय गौर कर रहा है। अभी पांच रीजनल मीटिंग्स होनी है। दो अप्रैल को होनेवाली नैशनल कमिटी के बाद ही हम किसी नतीजे पर पहुंचेंगे।'

यह कमिटी केंद्र को अपने अंतिम सिफारिशें देते समय पहले बनी कमिटीज की रिपोर्ट्स पर भी गौर करेगी। इसमें गोस्वामी कमिटी (1990), वोहरा कमिटी (1993), इंद्रजीत गुप्ता कमिटी (1998), लॉ कमिशन कमिटी (1999) और चुनाव आयोग (2004) और सेकेंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमिशन (2008) शामिल हैं।

बॉक्स : सुझाव कैसे -

कैसे चुनाव खर्च के लिए

1. चुनाव खर्च सीमा बढ़ाई जाए या इसे खत्म कर दिया जाए

2. प्रत्याशी की संपत्ति का ऑडिट हो

3. चुनाव प्रचार का अंतराल कम किया जाए

4. चुनाव खर्च सरकार वहन करे

साफ - सुथरे चुनाव पर

1. वोट देना कंपल्सरी हो।

2. चुनाव के छह महीनों के दौरान किसी भी तरह के सरकारी विज्ञापन पर रोक।

3. विधान परिषदों में टीचर्स और ग्रैजुएट सीटों पर पुनर्विचार।

4. पीपल ऐक्ट 1951 में बदलाव , ताकि पार्टियों के रजिस्ट्रेशन और कठिन बनाया जा सके।

राजनैतिक पार्टियों के फंड पर

1. पार्टियों के खातों का कैग द्वारा सालाना आडिट।

2. पार्टी के सदस्य को ( उसके संबंधियों को छोड़कर ) किसी के भी द्वारा दिया गया पैसा और उपहार पार्टी के खाते में गिना जाएगा

3. पार्टियों को 20 हजार से अधिक खर्च के लिए अकाउंट पेई चेक देना होगा।

चुनावी विवादों के लिए चुनाव से जुड़े विवादों के निपटारे के लिए हाईकोर्ट में हो स्पेशल बेंच। संविधान के आर्टिकल 329 बी में बदलाव करके विशेष रीजनल और नैशनल चुनाव प्राधिकरणों का गठन हो। सदस्यता समाप्त करने के लिए किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता समाप्त करने के लिए स्पीकर के बजाय चुनाव आयोग की सलाह पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को निर्णय लेने का अधिकार मिले।

अपराधीकरण पर

1. सीरियस क्रिमिनल केस से घिरे लोग न लड़ सकें चुनाव।

2. आपराधिक बैकग्राउंड छिपाने वाले प्रत्याशियों को कड़ी सजा।

3. ईवीएम पर हो ' इनमें से कोई नहीं ' का विकल्प।

4. विकलांगों को डाक से वोट का अध िकार।

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