
कहावत तो है कि आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया। लेकिन, बीजेपी और दूसरे दलों के साथ इसका उल्टा हुआ। दिल्ली सहित जिन पांच राज्यों में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं वहां 2008 में हुए पिछले चुनाव के दौरान जितनी कमाई हुई, उतना खर्च नहीं हुआ। मतलब चुनाव दलों के लिए कमाई का जरिया बना। चुनाव सुधार की दिशा में काम करने वाली एजेंसी असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से जारी रिपोर्ट की खास बात है कि बीजेपी ने आने जाने और प्रचार पर एक भी पैसा खर्च नहीं करने का दावा किया है।
मालूम हो कि नवंबर-दिसंबर में दिल्ली,मध्य प्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी खर्च में ट्रैवल,प्रचार सामग्री और नेताओं के आने-जाने पर हुआ खर्च जैसे मदों में होता है। हालांकि चुनाव में खर्च को लेकर राजनीतिक दल आयोग से ज्यादा ढील देने की मांग कर रहे हैं। संसद की स्टैंडिंग कमिटी ने भी चुनाव आयोग से खर्च की सीमा बढ़ाने को कहा है। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के खर्च पर नजर रखने के लिए अलग से पर्यवेक्षक तैनात किए जाते हैं।
रिपोर्ट की खास बात
-बीजेपी ने चुनाव आयोग को जानकारी दी थी कि उसने इन राज्यों के चुनाव प्रचार में प्रचार और ट्रैवल पर कोई खर्च नहीं किया। पार्टी ने सिर्फ उम्मीदवार के स्तर पर खर्च होने की जानकारी दी
-कांग्रेस ने इन राज्यों में सबसे ज्यादा 102 करोड़ रुपये खर्च किए
-सभी राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रीय दलों को मिलाकर चुनाव में 138 करोड़ रुपये चुनाव में खर्च किए गए
-इन दलों को चुनाव के दौरान 182 करोड़ रुपये की कमाई हुई
-बीएसपी को 76 करोड़ रुपये की कमाई हुई और पार्टी को सारी कमाई कैश में हुई
क्या है नियम
-सभी राजनीतिक दलों को चुनाव होने के बाद 75 दिनों में चुनाव के दौरान हुए खर्च का ब्योरा देना होता है
-इसमें चुनाव के दौरान मिले तमाम चंदे, डोनशन और किए गए खर्च के बारे में बताना होता है
- चुनाव आयोग की ओर से हर उम्मीदवार को खर्च करने की सीमा दी गई है और इससे ज्यादा वे खर्च नहीं कर सकते हैं